सामने जो पड़ गया वही बस तार तार है
ए खुदा जुबान है या जहर की तलवार है
परिंदे कैद कर अनुदान जो भी मांगता है
शख्स मुजरिम है कहाँ कोई तलबगार है
सीना छलनी कर गए वे सिंदूर बहनों का
उन दरिंदो को कहाँ जीने का अधिकार है
भूल जाये वो मगर हम याद रखेंगे हमेशा
उल्फते किताब है यह ना कोई अख़बार है
दास गुलदस्ता लिए जो घर मेरे आएंगे वो
लोग समझेंगे तुरत ये गुजरा यहां बीमार है
पानी में नाव छोड़के खुश हुआ बच्चा बड़ा
पार जाने के लिए बस आस की पतवार है