जैसे ही पहुँचे मम्मी-पापा अपनी बेटी के पते पर ..फफक-फफक कर रोने लगे वो, अपनी बिटिया को इस हाल में देखकर !!
इन्सपेक्टर ने ढांढस बँधाते हुए उन्हें बहुत ही मुश्किल से अलग किया उनकी बेटी से !
एक कमरे में बैठाया गया नेहा के मम्मी-पापा को और नेहा का लिखा सुसाइड लेटर उन्हें दिया गया।
जिसमें लिखा था-
साॅरी मम्मी..सारी पापा !!
मैं वो नहीं बन पाई जो मैं बनना चाह रही थी ।
सच कहूँ तो मुझे डाॅक्टर बनने में कोई रूचि है भी नहीं ।
पता नहीं..मैं पिछले दो दिनों से बहुत ज्यादा डिप्रेस में क्यों हूँ और कोई फैसला लेना भी मुश्किल लग रहा है !
कोचिंग वाले तो भारी-भरकम जमा मनी वापस करने से रहे !
रूम रेन्ट, मेस चार्ज सब मिलाकर बहुत कुछ डूब चुका है यहाँ !
पता नहीं पापा..यहाँ के माहौल में हमेशा एक ऊब सी होती है..एक मेन्टली प्रेसर रहता है यहाँ !
सिर्फ मोटिवेशन है यहाँ पर और कुछ भी नहीं !
पता नहीं ऐसा क्यों फील हो रहा है कि स्टूडेंट को टाॅपर आने की एक बहुत ही भयानक कीमत चुकानी पड़ती है यहाँ !
क्लास में जब भी मैं किसी प्राॅब्लम पे डिस्कस करना चाहती हूँ तो लोग मजाक उड़ाते हैं मेरा !
लोग कहते हैं..चीटर टाॅपर !!
कहने का मतलब ..टाॅपर कोई सवाल ही नहीं कर सकता यहाँ !
कुल मिलाकर..मेरा मन पूरी तरह से उकता गया है यहाँ से !!
मैं तो यही कहूँगी..
किसी टाॅपर को तो फिलहाल बिलकुल भी नहीं आना चाहिए यहाँ पापा !
यहाँ, मैं कोई सवाल ही नहीं कर सकती क्योंकि मैं एक टाॅपर हूँ..यानि मुझे सब कुछ आता है..तभी तो टाॅपर आई हूँ ।
किसी से मैं अपनी प्राॅब्लम शेयर नहीं कर सकती क्योंकि मैं एक टाॅपर हूँ !
सरकार को तो एक सर्वे करवाना चाहिए..पिछले पाँच सालों में जितने भी टाॅपर हैं..वे आखिर आज कर क्या रहे हैं !
मम्मी-पापा भी कुछ और करने नहीं देंगे क्योंकि आप एक टाॅपर हैं !
ऐसा लगता है जैसे मैंने टाॅप करके कोई गुनाह कर दिया हो !
अगर मैं अपने शहर भी आ जाती तो लोग ताना मारते कि कोटा की भगोड़ी आ गई है आखिर यहीं !
जब यही करना था तो आखिर करने क्या गई थी वहाँ !
मेरे प्रॉब्लम को किसी बेमतलब के अफेयर से कनेक्ट करते कुछ लोग ।
मैं देख रही हूँ मम्मी-पापा !
यहाँ सभी लोगों का भी लगभग-लगभग यही हाल है !
यहाँ आना वन वे हो गया है..आप आ तो सकते हैं लेकिन वापस नहीं जा सकते !
सच कहूँ तो मेरा इंट्रेस्ट म्यूज़िक में था मगर फिर वही बात..समाज सिर्फ पैसे से तौलता है किसी की अहमियत को !
इनका बस चलता तो ये गौतम बुद्ध को भी समझा-बुझाकर फिर से वापस भेज देते उनके घर !
मानती हूँ, दुनिया के हिसाब से मेरा ये क़दम कायराना है..मगर घुटकर जीना भी तो मुश्किल है !
मैं डरने लगी हूँ दरअसल मम्मी-पापा ..इतना करके भी अगर एकाध नम्बर से चूक गई तो..! कास्टिज्म का लफड़ा तो आप जानते ही हैं !
फिर तो मेरे पास अन्तिम रास्ता यही है जो आज अपना रही हूँ मैं !
यहाँ आकर मैं फँस गई मम्मी-पापा !
काश मैं यहाँ आई ही नहीं होती !
हमारा समाज कई घटनाओं के लिए अप्रत्याशित रूप से जिम्मेदार है ...जिसकी सजा उसे मिलनी ही चाहिए !
अब यहाँ से निकलने का एकमात्र उपाय यही है जिसे आज मैं अपना रही हूँ !
प्लीज, मैं अच्छा कर रही हूँ या गलत..मुझे कुछ भी पता नहीं मगर
यहाँ आने से रोकिये लोगों को !
मेरे जाने का मैसेज भी यही है कि यहाँ स्टूडेंट न आयें ! हो सके तो अपनी तैयारी अपने घर में..अपने शहर में ही रहकर करें !!
यहाँ का सबसे बड़ा हत्यारा है डिप्रेशन, ज्यादा उम्मीदें, लोग क्या कहेंगे..ये मँहगे-मँहगे कोचिंग संस्थान और बड़े-बड़े अनावश्यक आसमानी मोटिवेशन !!
इन सभी कोचिंग संस्थानों में तो सरकार को कोई क़ानून बनाकर ताला ही जड़ देना चाहिए ताकि लोग यहाँ आयें ही नहीं और मेरे जैसा फैसला लेने पर मज़बूर ही न हों !
यहाँ सिर्फ घुटन है घुटन ..और कुछ भी नहीं ।
आपकी उम्मीदों पर मैं खरी नहीं उतर पाई ! इसके लिए हो सके तो मुझे क्षमा कर दीजियेगा ताकि मैं अन्जाने सफ़र में निकलूँ तो रत्ती भर भी डर ना लगे !
मैं जहाँ से आई हूँ..वहीं जा रही हूँ !!
साॅरी मम्मी..साॅरी पापा !!
लेखक : वेदव्यास मिश्र
सर्वाधिकार अधीन है