कापीराइट गजल
औरत होने का दर्द
जब हाल-ए-दिल अपना, सुनाया हमने
एक नए दर्द से वाकिफ, कराया तुमने
जब-जब, खुशी ने, मुझे आबाद किया
हरेक खुशी के संग, मुझे रुलाया तुमने
मैं, बेटी हूं, बहन हूं, मां हूं मैं किसी की
क्यूं आंसू से मेरा दामन, सजाया तुमने
नाम और उम्र बदले, ये वक्त भी बदला
नए जुर्म से मुझको फिर सताया तुमने
न्याय के लिए सदा, तरसती रही हूं मैं
रो-रो कर गुजारी है, यह जिन्दगी हमने
मर-मर कर जीती हैं, ये बेटियां आज भी
निजाम ऐसा मेरे लिए क्यूं बनाया तुमने
महरूम हूं अपनी, पहचान से ही अब
समानता का ये लेबल क्यूं लगाया तुमने
बन, गए हैं दुश्मन, अब यह अपने मेरे
चन्द पैसों के लिए, जब जलाया तुमने
कमी नहीं है यहां पर, सताने वालों की
करके साजिश नई जब, फंसाया तुमने
मैं, अब कहीं पर भी, महफूज नहीं हूं
जब अपनों को जुर्म करते, पाया हमने
नोंच रहा है जिस्म यह, हर कोई मेरा
जब, बाजार में मुझ को, बिठाया तुमने
तार-तार हुई है, जब यह अस्मत मेरी
मेरे जिस्म को जख्मों से, सजाया तुमने
कैंडल मार्च निकालते हो, मेरे मरने पर
यूं परदा डाल गुनाहों को, छुपाया तुमने
मैं एक औरत हूं, यही है अपराध मेरा
शिकार हर बार हवस का, बनाया तुमने
जब जी नहीं भरा, जिस्म से खेल कर
फूलों के संग मुझ को, सुलाया तुमने
शरम करो खुद पर, अय, दुनियां वालो
यह हाल मेरा ऐसा, क्यूं बनाया तुमने
मैं जिन्दा रहूंगी कैसे, समाज में यादव
हर इल्ज़ाम मेरे सर पर, लगाया तुमने
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है