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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

गजल - नजरें चुरा के हमसे

कापीराइट गजल

नजरें चुरा के हम से जब वो निकल गए
अरमां हमारे दिल के दिल में मचल गए

जिन्दगी में हम को जिसकी तलाश थी
वो साथी हमारे अपने कब के बदल गए

खुशबू से प्यार की, ये दिल महक गया
दिल में जो बसे थे वो चेहरे बदल गए

ख्वाब था कोई, या झौंका कोई हवा का
ख्वाहिशें हमारी हकीकत में बदल गए

वैसे तो ख्वाब में होता नहीं ये मुमकिन
यादव न जाने कबसे अपने बदल गए

-- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (7)

+

Arpita pandey said

Good morning sir ji 🙏 Bhaut sundar gajal

Lekhram Yadav replied

Very good morning with thanks Arpita ji

रीना कुमारी प्रजापत said

Haaye! 👌👌🙏🙏

Lekhram Yadav replied

धन्यवाद सहित सादर नमस्कार मेरी प्यारी बहना।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Waah sir ji laazwaab ghazal...Saadar Pranam 🙏🙏

Lekhram Yadav replied

धन्यवाद सहित सादर प्रणाम सर जी।

सुभाष कुमार यादव said

👌👌👌🙏

Lekhram Yadav replied

धन्यवाद सहित सादर नमस्कार सुभाष जी

वन्दना सूद said

बहुत सुंदर ग़ज़ल 👌👌👏👏

Lekhram Yadav replied

My dear sister thanks for such a beautiful comment.

श्रेयसी said

Good afternoon, saadar pranaam 🙏🙏 ati sundar gajal 👌👌

Lekhram Yadav replied

Good afternoon my dear sister with a bundle of thanks.

कमलकांत घिरी said

वाह वाह सर जी क्या कमाल का लिखें है न "जाने कबसे अपने बदल गए...👌👏🙌🙏प्रणाम

Lekhram Yadav replied

सुप्रभात एवं धन्यवाद सहित सादर नमस्कार कमलकांत भाई।

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