मेरी आंखों में, उसका इंतज़ार देखना..
मौसम फिर होगा , ख़ुशगवार देखना...।
रुक जा एक बार, कुछ हौसला तो रख..
तुफां के बाद, दरिया का उतार देखना..।
आप उनकी बाज़ीगरी के, कायल तो हो गए..
मगर अभी तेल देखना, तेल की धार देखना..।
मासूम चेहरों से मिले, धोखे तो जग–जाहिर हैं..
दो घड़ी रुक कर, पहले किसी का विचार देखना..।
मौसम पर यूं ही, बे–नियाज़ी का इल्ज़ाम लगा है..
कभी ज़रा अलसुबह उठकर, सबा-रफ़्तार देखना..
तर्क–ए–ताल्लुक़ से पहले, कोई उनसे कह दे ज़रा..
मेरी ख़्वाब-ओ-ख़्वाहिश देखना, मेरी दरकार देखना..
शहर का मिजाज़, यूं तो मन–मुआफ़िक सा है मगर..
उसकी हकीकत जानने को, कल का अख़बार देखना..।
पवन कुमार "क्षितिज"