पलकें बिछाकर समेट ले
सांझ तले पुलकित रेह।
उर में गूंजते निशि विरह
श्वास वेग में मूर्छित लय।
आते जाते छाया का परिचय
दे क्या यह हृदय प्रतिपल
रहस्य हर क्षण का बुझने
ठहरा कौन यहां अवदत?
क्षीण स्वप्नों की तेज ज्वाला
मौन मंत्र की उदीप्त आभा।
विषाद ग्रंथ के शब्दों पर आश्रित
प्रशस्त करती देखो मार्ग सुवासित ।
_ वंदना अग्रवाल 'निराली'