जिससे कभी मिला नहीं,
वो जाने कैसा अपना था —
उसके शब्द, जैसे धूप की पतली परत,
मन के किसी कोने में उतर आते थे।
मैंने कभी देखा नहीं उसे,
पर उसके शब्द पहचानता था —
वो शब्द जो हर बार
मेरे भीतर एक वाक्य अधूरा छोड़ जाते थे।
आज सुना — वो चला गया।
जैसे कोई परछाईं,
धूप के पार निकल गई हो —
बिना आहट, बिना विदाई।
हवा में एक कंपन उठी,
किसी गंध जैसी —
शायद वही था,
जो अपने न कहे शब्दों में लौट आया।
अब उसकी याद
किसी दीप की लौ नहीं,
एक धुंध-सी उजास है —
जो बुझी भी नहीं,
जली भी नहीं… बस है।
कभी-कभी सोचता हूँ —
रिश्ते शायद मिलन से नहीं बनते,
कुछ आत्माएँ
बस शब्दों के बीच से गुजरकर
हमारे भीतर ठहर जाती हैं।
जिससे कभी मिला नहीं —
वो अब भी मेरे साथ है,
हर अधूरी कविता के अंत में
एक मौन पंक्ति बनकर।
— इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर,झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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