आज मैंने उसके और मेरे पुराने चैट्स पढ़े,पढ़कर अच्छा तो लगा मगर बहुत बुरा भी लगा। अच्छा इसलिए लगा कि पहले मैं अच्छे से बात करती थी उससे, गुस्सा कम करती थी, गुस्सा हो जाने पर जल्दी मान जाती थी,और बुरा इसलिए लगा क्योंकि अब मैं पहले जैसे बात नहीं करती हूं, गुस्सा रहती हूँ दिनभर, पहले उसका अच्छे से ख्याल रखती थी, अब गुस्सा बहुत आता है इसलिए उसका ठीक से ख्याल भी नहीं रख पाती। न जाने क्या हो गया है मुझे?मैं खुद से ही सवाल कर रही हूँ। न जाने क्या हो गया है मुझे, मैं क्यों नहीं समझ पा रही हूँ कुछ भी। मैं पुरानी सुप्रिया क्यों नहीं बन पा रही हूँ? आखिर हो क्या गया है मुझे जो मैं समझदार से नासमझ हो चुकी हूँ ?इन सवालों के जंजीरों से मै कब निकल पाऊंगी, ये प्रश्न मेरे दिमाग में हर वक्त घूमते रहता है। क्या मैं कभी पहले जैसी सुप्रिया बन पाऊंगी, ख्याल रखने वाली, respect करने वाली, smile करने वाली, उसका हर वक्त ध्यान रखने वाली, क्या मैं फिर से उसकी अच्छी दोस्त बन पाऊंगी....।।
- सुप्रिया साहू

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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