जिंदगी हर रोज एक नई किताब लिखता है,
अगली सुबह होते ही वह अपने वजूद से मिटता है,
चाहकर भी पढ़ न पाओगे उस किताब को दोबारा,
क्योंकि वक्त के साथ उस किताब का हर पन्ना फटता है,
रह जाता है केवल उन लम्हों का उभार,
जो यादें बनकर शायद जिंदगी भर रहता है..!
----कमलकांत घिरी, मनकी, मुंगेली, छत्तीसगढ़।