ऐ हवा मुझे भी अपने संग ले चल ।
छा जाऊं मैं भी इस जहां में ,
जैसे तु छाई है,
छू लूं मैं भी सभी के दिल को ,
जैसे तु छूती हैं।
ऐ हवा मुझे ................।
आज़ाद हो जाऊं मैं भी सभी बंधनों से ,
जैसे तु आज़ाद है ,
जा सकूं मैं भी सरहद के उस पार ,
जैसे तु जाती हैं सरहद के उस पार ।
ऐ हवा मुझे .................।
मैं भी भा जाऊं सभी के मन को ,
जैसे तु भाती हैं सभी के मन को,
चलूं मैं भी ऐसे लहराकर ,
जैसे तु चलती हैं ।
ऐ हवा मुझे ..................।
----रीना कुमारी प्रजापत