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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

अपना जीवन तबाह कर बैठा है...

प्राकृतिक परिवेशों की भी हालात बदल डाला है।
है यह आदमी जो प्रकृति से हीं युद्ध नाध डाला है।
जैसे पड़ी कुल्हाड़ी को अपने पैर पे मार डाला है।
देवभूमि में लोग पूजा नहीं पिकनिक मनाने जातें हैं।
पर्यावरण का दोहन कर कूड़ा कूड़ा कर जातें हैं।
लोगों की आवाजाही से व्यापारियों की बाछें खिल गईं।
पैसों की लालच ने लोगों की मति भ्रष्ट कर दीं।
दनादन पहाड़ों पर होटलों लक्जरी हाउसों की बाढ़ आ गई है ।
अब पहाड़ों को उजाड़ कर बस्तियां बस गईं हैं।
प्राकृतिक आवासों जंगलों की दनादन कटाई जारी है ।
पर लोग अक्सर भूल जातें हैं की कल कटने की उनकी हीं बारी है।
तरक्की विकास के नाम पर सब बवाल हो रहें हैं।
और केदारनाथ जैसी दुर्घटनाओं पर सवाल उठ रहें।
मौसमों में इतनी विविधताएं सब ग्लोबल वार्मिंग के कारण हैं और ये ग्लोबल वार्मिंग
भी सब इंसानों के कारण हीं हैं।
अती सर्वत्र वर्जयेत को ये चरितार्थ कर रहें हैं।
बहुताय इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के इस्तेमाल से ग्लोबल वार्मिंग हो रहें हैं।
हम प्रकृति पर्यावरण की दोहन नहीं अपितु
खुद का दोहन कर रहें हैं ।
और इससे उत्पन्न समस्याओं के लिए रब को दोष दे रहें हैं।
हम प्रकृति को नहीं बल्कि खुद गुलाम बन रहें हैं।
जहां जब जब भी जिस जिस चिज़ की मनाही है हम वही कर रहें..
अंततः अपनी आने वाली पीढ़ियों के साथ साथ अपना भी अहित कर रहें हैं।
यहीं कारण है कि कभी कठोर खड़े चट्टान भी अब आसानी से दरक रहें हैं।
पहाड़ी परिवेश के घर शैने शैणे धंस रहें हैं।
जो आम जनता के साथ साथ सरकारों की भी चिंता बढ़ा रहें है...
इतना सब होने के बाद भी हम नहीं सुधर रहें हैं
कभी ना जितने वाली लड़ाई हम प्रकृति मां से कर रहें हैं।
याद रक्खों जिसने बनाया हमें
वह मिटा भी सकता है।
आदमी एक कठपुतली के समान
कठपुतली हीं रहता है।
प्रकृति पर्यावरण के क्रोध के आगे ज़ोर किसका चलता है।
जो जैसा बीता है वैसा हीं काटता है।
है यह आदमी बड़ा हीं अजीब
अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आता है।
इतना सब होने के बाद भी वह नासमझ मूढ़ बना बैठा है।
कभी ना जितने वाली लड़ाई आज़ मानव
प्रकृति से कर बैठा है।
अपना जीवन तबाह कर बैठा है
प्रकृति से युद्ध नाध बैठा है...
अपना जीवन तबाह कर बैठा है.…




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

Komal Raju said

Sahi kha...prakrti ki rakhsa or respect krni chahy.

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