ना देख ऐ नादान इंसा
तू उसे बुरी निगाहों से,
उसका क्रोध ज्वाला बन जायेगा
तू एक क्षण में जल जायेगा,
क्योंकि.......
क्योंकि उस नारी को
नफ़रत है बुरी निगाहों वालों से।
ना छीन ऐ नादान इंसा
तू उससे उसकी आज़ादी,
एक क्षण में राख हो जायेगा
तू मिट्टी में मिल जायेगा,
क्योंकि........
क्योंकि उस नारी को
बड़ी प्यारी है उसकी आज़ादी।
ना ज़ुल्म कर ऐ नादान इंसा
तू उस मतवाली पर,
रण चंडी बन जायेगी
शूल घोंप देगी तेरी छाती में
जो वो महाकाली बन जायेगी,
क्योंकि.......
क्योंकि उस नारी को
ज़ुल्म सहना पसंद नहीं।
ना डाल उस शेरनी की इज़्ज़त पर तू हाथ कयामत वो ले आयेगी,
बन गई अगर वो भद्रकाली
तीनों लोक तुझे भगाएगी,
क्योंकि.........
क्योंकि उस नारी को
अपनी इज़्ज़त है बड़ी ही प्यारी।
ना उंगली उठा ऐ नादान इंसा
तू उसके चरित्र पर,
दुर्गा बनेगी , रण चंडी बनेगी
अस्तित्व मिटा देगी तेरा वो
अगर बन जायेगी खप्परवाली,
क्योंकि........
क्योंकि उस नारी को
नफ़रत है अपने चरित्र पर
उंगली उठाने वालों से।
"रीना कुमारी प्रजापत"