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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

बाज़ ने कहा — ऊपर चलें क्या?

कौआ चिपका बाज़ की गर्दन,
कहने लगा — “अब सुन मेरी अड़चन!”
“मैं बताऊँ तुझे उड़ान क्या है,
तेरी ऊँचाई मेरी जान क्या है!”

बाज़ ने बोला — “ना बोल तू भाई,
तेरा दायरा ज़मीन तक ही जाए।
मैं तो उडूँ वो जहाँ हवा डरती है,
जहाँ आवाज़ भी सोच-समझ कर झरती है!”

कौआ बोला — “मैं तुझे खरोंचूँगा!”
बाज़ हँसा — “तो जा, जो सोचे तू करूँगा!”
“पर मैं ना लड़ूँगा, तू समझ ले रे,
मैं चुपचाप ऊपर उड़ूँगा रे!”

बाज़ उड़ा, और ऊँचाई बढ़ी,
कौए की साँसें धड़कन से लड़ी।
हवा हुई पतली, काँप गया प्राण,
कौए ने छोड़ा बाज़ का गुमान।

गिर पड़ा कौआ नीचे हाँफता,
बाज़ ने कहा — “अब समझा, काफ़ी था!”
“हर ज़िंदगी में कुछ कौए चिपकते हैं,
पर हम लड़ाई नहीं, ऊँचाई से निपटते हैं।”

तो सीख यही है, सुन ऐ यारा —
बाज़ बन, न बन शोर का सहारा।
ना झगड़, ना चीख, ना घबराहट पाल,
बस उड़ता जा, खुद-ब-खुद गिरेंगे जाल!




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

Shiv Charan Dass said

हम लड़ाई नहीं ऊंचाई से निपटते हैँ. ...बहुत खूब

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