शहर कस्बे से है कई कोसों दूर,
अपना प्यारा छोटा सा एक गाँव ,
मिलजुल कर हैं रहते है यहां सारे,
सबके अपने पत्थर मिट्टी के ठाँव ,
मेहनती गरीब शरीफ लोग यहां,
ईमान को लगाते कदापि न दाँव,
बेखौफ यहां सदेव पक्षी चहचहाते,
कौए करते धीमी २ सी काँव काँव ,
नन्हे २ मुन्ने छोटे से नाले में खेलते,
पत्तों के गुड्डे और कागज़ की नाँव,
सभ्य ग्रामीण हैं साफ सुथरे रास्ते ,
शोषण कलह नशा के न पड़े पाँव ,
स्वच्छंद आनंदमयी शांत परिवेश ,
पुष्प विहार अंजीर की मधुर छाँव,
सहकारिता परोपकारिता में धनी ,
रोग व्याधि बुखार न छींक आँव ,
सर्वधर्मसंप्रदाय भाईचारे की खान,
स्वर्ग से सुंदर बन जाए मेरा गांव !
✒️ राजेश कुमार कौशल
[हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश]