एक माँ
एक माँ
जिसकी आँखें तो सूखी थी
पर दिल आँसुओं से भीगा था
भावनाओं पर खामोशी के पर्दे थे
पर सोच की लहरें मन में उछाल खाती थीं
बेटे की जुदाई का दर्द असहनीय था
शब्दों में ब्याँ करती तो तमाशा बनना तय था
आँखों से झलकता तो फसाना बन जाता
बेदर्द अपने दर्द को कम क्या करते
धुएँ को हवा दे दे अग्नि प्रज्ज्वलित करते रहे
खूबसूरत रिश्तों में और दरार डालते रहे
एहसास तब हुआ उस माँ को
जब सब बिखर कर सुधरने लगा
वो ख़ास थे वक्त ने सम्भाल तो दिए
पर सम्भलते सम्भलते ना खुलने वाली गाँठ लगा गए..
वन्दना सूद
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