मोहब्बत हो गई अब इसको छुपाना कैसा।
तूँ अब आये न आये बहाने बनाना कैसा।।
रोज लिखता रहूँगा ग़ज़ल तुम्हारी याद में।
भला खुद को मोहब्बत मे भुल जाना कैसा।।
हर साँस आती जाती ले रही हैं नाम तुम्हारा।
अब 'उपदेश' तुमसे जीतना और हरना कैसा।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद