मृदु परों को फैलाकर
सहज सहज यूं बलखा कर।
दृग जल उर कोषों में भर
बिखर बिखर छलक रही है ।
शोख हवायें बहक रही है।।
चित्र चंचल चितवन पर छोड़
प्रियतम पथ पर पद को मोड़।
सुगंधित सौरभ सा घुल घुलकर
पुलक पुलक यूं महक रही है
शोख हवायें बहक रही है।
सिंधु प्रीति का बनकर खूब
उज्ज्वल स्मित में खिलकर डूब,
यौवन की सुषमा लिए स्वरूप
स्वप्न सुंदरी सी चहक रही है
शोख हवायें बहक रही है।
_ वंदना अग्रवाल 'निराली'

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




