गौरवशाली अतीत का स्मरण,
महान गुरु-शिष्य की वह धारा,
समय की मांग ने आज कहा,
समाज को चाहिए एक नई धारा।
बदलते वक्त का नया पैमाना,
गुरु-शिष्य का नया फ़साना,
नहीं चाहिए केवल विश्वविद्यालय के गुरु,
चाहिए समाज के लिए नवविचार का खजाना।
भले हो आपसी मतभेदों की बिसात,
पर लक्ष्य हो देश का उत्थान,
सम्बंधों की मिठास नहीं जरूरी,
कर्तव्य हो राष्ट्र और मानवता का कल्याण।
ओपेनहाइमर ने किया था वही,
कर्तव्य निभाया, सम्बंधों पर न किया क्षय,
शिष्य उनके आदर में थे बंधे,
पर कर्तव्य ने उन्हें राष्ट्र की राह पर चलाया।
नहीं था प्रेम का अभाव,
पर कर्तव्य की थी प्राथमिकता,
देश की सेवा में संकल्पित हो,
गुरु ने किया अपने धर्म का पालन।
समाज के गुरु-शिष्य चाहिए,
जो संकल्पित हों देश के लिए,
सम्बंधों की नहीं, कर्तव्य की प्रधानता हो,
समाज को चाहिए ऐसी नई विचारधारा।
गुरु-शिष्य का नया अधिनियम,
कर्तव्य से बढ़कर नहीं कोई नियम,
देश और समाज का हो नव निर्माण,
कर्तव्यपथ पर चले यह नया संबंध-विधान।
समय के साथ आओ करें बदलाव,
कर्तव्य में हो सुधार का पाव,
गुरु-शिष्य की परम्परा रहे महान,
बस कर्तव्य में आए नए आविष्कार का प्रवाह।
- प्रतीक झा
शोध छात्र
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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