मुझसे वफ़ाओं की सौ कसमें मत खाओ,
झूठी उम्मीदों के ज़ख़्म मत दिखलाओ।
मैं तो इक लम्हे की साँस में जी लूँ,
तुम उम्र भर का भरम मत बन जाओ।
वो एक वादा जो साँसों में जलता है,
उससे बेहतर सौ चाँद मत लाओ।
मैं टूटी कसमों से उठी हूँ कितनी बार,
अब दर्द का नाम मत रख जाओ।
तुम साथ हो तो कहो चुपचाप रहोगे,
ये मत कहो — “हर हाल में निभाओ।”
इक दिन जो लौटो, तो यूँ लौटना कि,
मैं फिर न कहूँ — “क्यों अब चले आओ?”
वो एक वादा, जो आँखों में ठहरा था,
अब अश्क़ों से कह दो — उसे भी बह जाओ।
तुमने जो कहा था — “सदा साथ रहेंगे,”
अब वो लफ़्ज़ मेरे कानों में चुभते हैं।
हर वादा एक चाक़ू निकला सीने में,
तुम हँसते हो — और हम बस सहते हैं।
जिस वादे में मैं थी — तुम नहीं निकले,
और जो तुम थे, वहाँ हम कहाँ रहते हैं?
वो एक दिन जो तुमने मुझे देखा था,
अब उस नज़र को भी हम गुनाह कहते हैं।
मेरी ख़ामोशी को तुमने जो छुआ था,
अब मौन भी मुझसे डर के रहते हैं।
अब वादों की बात मत करना “जानाँ,”
मैं टूटी हुई हूँ — और वादे झूठ कहते हैं।