ज़न्नत की हूरों की ख़ातिर क्यों जन्नत को बर्बाद किया,
पहलगाम की खुबसूरत वादी को क्यों तुमने शमशान किया ,
नए जीवन के सपने संजोकर कोई यहाँ पर आया था ,
कोई अपनी यादों में खूबसूरती भरने जीवनसाथी को लाया था,
तो कोई शान्ति की तलाश में दूसरे देश से आया था,
मगर तुमने तो सारी इंसानियत को शर्मसार किया ,
उनके ख़्वाबों को छोड़ो उन्हें ही मौत के घाट उतार दिया,
कश्मीर का हर मुद्दा जानकर भी हम सभी यहाँ पर आते हैं ,
क्यूँकि हम इंसान हैं और इंसानियत को हम सबसे बढ़ कर मानते हैं ,
धर्म पूँछ कर मारा तुमने अधर्म का तुमने काम किया ,
कश्मीर की उस घाटी को तुमने लहू-लुहान किया ,
एक-एक आतंकी को मार गिराया जाएगा,
सेना की वर्दी पहनकर देवदूत अब आएगा ,
जो गुजर गए उनको श्रदांजलि अर्पित करते हैं ,
अपने दिल से उन पुण्यात्माओं को सम्मान समर्पित करते हैं।
लेखक - रितेश गोयल 'बेसुध'