तुम बिन तो बस अकेली थी मैं, ये तो सच था,
पर तुम्हारे साथ रहकर अनाथ सी लगती थी मैं।
तेरे लफ़्ज़ मीठे थे, ज़हर घुला था भीतर,
हर मुस्कान के पीछे साज़िश सी लगती थी मैं।
तू भीड़ में था, मैं भी तेरे पास खड़ी थी,
फिर भी हर साँस में सूनी बात सी लगती थी मैं।
तू कहता था — “मैं तेरे बिना जी नहीं सकता,”
पर हर रोज़ तेरी नज़र में बोझ सी लगती थी मैं।
तूने वादे किए, पर निभाया किसी से नहीं,
तेरे हर झूठ के बाद राख सी लगती थी मैं।
अब जब तू नहीं है, तो चैन है कुछ पल का,
तेरे साथ थी तो बस लाश सी लगती थी मैं।
प्यार अगर पिंजरा बने तो आज़ादी बेहतर है,
तेरे साथ रहकर भी क़ैद सी लगती थी मैं।
– शारदा गुप्ता