कापीराइट गजल
किनारा कर बैठे
तेरी बातों से जब हम किनारा कर बैठे
अपने आपको खुदसे बेसहारा कर बैठे
बङी शिद्दत से हमने निभाई थी दोस्ती
मगर इसमें भी अब वो खसारा कर बैठे
बढ़ता ही गया लालच उनकी आंखों में
इस लालच के डर से किनारा कर बैठे
वो ईशारों ही ईशारों में कहते रहे हमसे
जो करना नहीं था वो ईशारा कर बैठे
न जाने टूटी हैं कितनी फरेब में दोस्ती
यह देख कर हम भी किनारा कर बैठे
हम दूर हैं तो ये मेहरबानी है आपकी
इस बात से कर तौबा किनारा कर बैठे
अब न आएंगे मिलने कभी तुम से यादव
तेरी दुनियां से अब वो किनारा कर बैठे
लेखराम यादव
(मौलिक रचना)
सर्वाधिकार अधीन है