आता हुं तेरी गली में ll
तेरा दीदार करने को ll
नजर न परे मेरे चेहरे पर ll
इसलिए तू छुपी रही अपने घर की आंगन ll
राह देखता हूं तेरे आने का ll
फिर थक के हार जाता हूं ll
कभी हॉस्पिटल से भाग कर ll
तो कभी घर बालों से छुप कर आता हूं ll
तुझे देखने मै हर रोज आता हूं ll
नजर नहीं आई तो ये देख कर ll
मै न जाने उदास क्यों हो जाता हूं ll
हर कर फिर मैं तेरे ही खयालों में न जाने क्यों खो जाता हूं ll
तेरी दीदार के खातिर मैं ll
हर रोज तेरी गली में आता हूं ll
ज़ख्म गहरा दिया है ll
तुमने ये सोच कर ll
फिर भी तुझे देखने के लिए ll
मै हर रोज तेरी गली में आता हूं ll
तू इतनी नजर क्यों हो मुझसे ll
ये तो नहीं जानता ll
मैं तुम्हें आज भी अपनी जान मानता हूं ll
लेखक:- शिवम् जी सहाय