सच्ची कहें..
पराये शहर में हमारा भी कोई,
अपना सा लगने लगा है !!
अब इस शहर में
हमारा भी मन रमने लगा है !!
इस शहर में सभी के साथ अब, हमारा भी मन बहलने लगा है !!
इस बेगाने शहर में हमें भी कोई,
अपना सा लगने लगा है !!
लगता है इस शहर के,
चप्पे-चप्पे में इश्क़ घुला हुआ है !!
अब हमारा भी बेचैन मन,
इस शहर में खुश रहने लगा है !!
कुछ तो जादू है यहाँ की फ़िजाओं में,
बातों-बातों में ही गीत बनने लगा है!
अब इस बेगाने शहर में..
हमारा भी दिल लगने लगा है !!
कौन कहता है कि शहर में,
हर कोई मतलबी ही होता है !!
कुछ तो बात है यहाँ की अदाओं में,
इस उम्र में भी दिल इश्क़ करने लगा है !!
अब इस अजनबी शहर में,
कोई अपना सा लगने लगा है !!
अब इस शहर में,
हमारा भी दिल लगने लगा है !!
सर्वाधिकार अधीन है