हम वफ़ादार हैं तो लगा सब वफ़ादार हैं
ठोकरें मिली तो लगा ऐसे भी किरदार हैं
दुखद है,अपने अपनों से हीं करतें हैं गद्दारी
अंतरआत्मा नहीं धिक्कारती उन्हें जो गद्दार हैं
झूठी अना में क्यूँ जीते रहते हैं लोग
नसीहतें उनसे क्यूँ नहीं लेते, फ़रिश्ते जो दो चार हैं
ईमान बेचते वक़्त और कुछ भी नहीं दिखता
नज़रें सिर्फ उसे ढ़ूँढ़ती है जो ख़रीददार हैं
छोड़ो भी बेईमानी,लड़ाई-झगड़ा,ख़ून-ख़राबा
ढ़ूँढ़ो उन्हें जो शांतिप्रिय और ईमानदार हैं
सुखी रोटी खा कर भी ख़ुश रहते हैं
लुभा नहीं सकती कुछ भी उन्हें जो इज्ज़तदार हैं
ज़न्नत है वहां जहाँ शुकून रहता है
अब भी कुछ लोग हैं एसे जो अमन के तलबगार हैं
जीने के अंदाज बदल हीं जाएंगे
दुनियाँ हंसीं लगेगी उनसे मिलो जो ख़ुद्दार हैं