न बात बना पाए
न शब्द लिख पाए
न व्यधा बोल पाए
अचल रहकर खड़ी हूँ ॥
तुम्हें रुक न पाए
चल देने न पाए
कभी-कभी ताईद
करू, न कभी-कभी ॥
तुम्हें दूर न कर पाए
तुम्हें पास न रख पाए
तुम्हें छूट न कर पाए
सब सामने न रख पाए ॥
न अंदर छिप सकती
न बाहर बोल सकती
आँसू भरी सागर के
बदले, बहिष्कार कैसे करूँ ॥