शीर्षक:- प्रारंभ हुआ और मेरा सवाल।।
इसी से चुप था और जितना काल भीतर था,
सब समेट लिया जितना हुआ,
प्रारंभ हुआ और मेरा सवाल था,
क्या समझ में आया जो बाहर निकल आया।
किसी से पूछा, पूछने में समय लगा
आवाज़ में, शब्द में, खेल में, खाकर आधी रोटी
मां के दूध में शैशव भी सिमट गया,
छः बरस का हो गया खुद से निकला, घर से निकला,
स्कूल से घर और घर से स्कूल का हो गया,
बाएं हाथ से पूछूं दाएं को लिखना ना आए,
मैडम पढ़ाए मैडम पढ़ाए खुद ही पढ़ती जाएं,
क्या समझ में आए जो भूलने के दिन ,
प्रारंभ हुआ और सवाल था,
बचपने को क्या पढ़ाए।
शेषफल में गणित रह गई,
भाग में अंग्रेजी रह गई,
पिता को नौकरी चाहिए,मां को शादी वाला पोता चाहिए
ये घर में लड़ाई लड़ी नहीं,
बहू खाना बनाने को अड़ी नहीं,
पड़ोस की सियासत चलती नहीं,
अखबारों में किताबें बनती नहीं,
ये दुनिया, दुनिया से चलती नहीं
अंत में दे देकर ठोकर पहुंचे श्मशान घाट,
जलने पर भी किसी ना रूके ठाठ।।
- ललित दाधीच।।