तुम्हारे नाम से 'उपदेश' ऐसा हार्मोंस बनता।
खुशी बहुत बढ़ जाती मन फूल सा खिलता।।
रूह अमन चैन पाती तन्हाई दूर भाग जाती।
हवाएँ गुनगुनाती जिस्म डालियों सा हिलता।।
मेरी आँखों के आगे तुम बादल से तैरने लगते।
नमी महसूस होते ही सिहरन से दिल भरता।।
मुझे कईयों ने ठुकराया तेरी शरण के कारण।
उन पत्थर दिलों के बीच तूँ हीरा नजर आता।।
अब रुकती नही आँधी उड़ाकर लेजा मुझको।
मेरे सफर के दर्द गायब अब धीरज नही आता।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद