अहम् की हर सीमा पार कर ली
चाहे सुबह के गुलाबी बादल जिन्हें सूरज की किरणों ने सजाया हो
चाहे पेड़-पौधे ,रंग-बिरंगे फूलों ने प्रकृति को सजाया हो
पहाड़ों की बारिश में बढ़ती ख़ूबसूरती हो
समुन्दर,नदियाँ या झरनों की मन को लुभाती जलधारा हो
तारों की बारात ने रात्रि को जगमगाया हो
चन्दा ने आसमाँ से निहारा हो
जिसने दुनिया बनाई,उसकी रहमत का क्या कहना
सम्पूर्ण प्रकृति सौंप दी हमें जीने के लिए
हर सौंदर्य का जी भरकर लुफ़त उठाते हैं हम
और हमारा अहम् तो देखो
हमने उनकी मूरत क्या बना ली
ख़ुद को ही ख़ुदा मान बैठे
उनको परदे में ढक दिया
मिलने का समय नियुक्त कर दिया
कभी भोग,कभी विश्राम और कभी शृंगार में बाँध दिया उन्हें
जो प्रभु कण-कण में हैं ,हर पल,हर क्षण हर जगह पर हैं
स्वार्थी प्राणी ने अनमोल प्रभु का भी मोल लगा दिया..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




