हवा का एक धर्म है
हवा का एक कर्म है
जो आदमी सा नहीं है
सूरज का अपना धर्म है
सूरज का अपना कर्म है
जो आदमी सा नहीं है
जो बहती है
बिना शर्त बहती है
जो चमकता है
बिना शर्त चमकता है
आकाश की कहाँ कोई शर्त है
संभाला सब बेशर्त है
आकाश का धर्म भी
आकाश सा अंतहीन है
जल का एक धर्म है
जल का एक कर्म है
आदमी का धर्म संकीर्ण क्यों है
कहते है
है आदमी में
हवा
जल
आकाश
हवा
पृथ्वी
फिर आदमी में क्यों नहीं है
धर्म
जल सा
हवा सा
सूरज सा
आकाश सा
आदमी का कोई धर्म क्यों नहीं है
आदमी अकेला
क्यों धर्महीन है
आदमी क्यों कर्महीन है
आदमी का कोई
कर्म क्यों नहीं