मेरी दौलत, मेरा असबाब,
एक डायरी, कुछ किताब।
घर का, एक शांत कोना,
मैं, सुकूँ और मेरा ख़्वाब।
कलम, भाव, शब्द साथी,
इनके बगैर तो मैं बेआब।
मन में आते कईं सवाल,
काश! लिख पाता जवाब।
जो लिख पाता मैं जवाब,
तब लगता लिखा नायाब।
जरूरी नहीं सब करे पसंद,
लाजवाब, तो है लाजवाब।
सफलता नहीं संघर्ष देखो,
यूँ ही नहीं होते कामयाब।
🖊️सुभाष कुमार यादव