मुझे मुझ पर ही हक़ करने दे
ओ ज़िंदगी मुझे बस यूँही जीने दे
बड़ी अनसुलझी है तूं तो क्या ?
बस यूँही मुझे उलझने दे
अहसास की कोमल डोर न टूटे
मन कही ओर न उलझे
ख़्याल यहीं रख ये तेरा काम है
संवेदना की स्नेहधारा में बहने दे
मौसम अक्सर रूप रंग बदले
चाहे हाल -ए- दौर से गुजरे
इंसान भले इंसानियत भूले
पर सुन ओ ज़िंदगी जो है वोही रहने दे
तूं तो केवल गति है
तूं क्या जाने दर्द -ए- महफ़िल क्या हैं
जरा थम ओर देख ग़म न दे
ओ ज़िंदगी उम्मीद की तलाश में जीने दे
बेहद चाहा तुझे सिला ना दे
हर हाल में जिया भुला न दे
आत्म की तूं यारी, बदन कि क्यारी
ओ ज़िंदगी पंछी माफ़क अब उड़ने दे