हिन्दू तू अब मौन क्यों हैं
देश धर्म का बोध नहीं है
एक वृक्ष के पत्ते हैं हम
जड़ हमारी एक ही है
फिर भी बिखरे घूम रहे
मुरझा कर सूखे हुए हम
अन्यत्र ही गिर रहे हैं
सांझ को काहै पूजे
उदीयमान सूर्य को भजता
जल रहा है दीप सनातन
जो कभी नहीं है बुझता
फिर दीपक से बाती को
अलग है क्यों करता
बिखरन में मजा नहीं है
भविष्य की यह सजा है
सब मिल बांधें हाथ आओ
सनातन का गौरव लौटाओ
गोपाल के भोग का पुनः
तुम आदर दिलवाओ
✍️#अर्पिता पांडेय