उम्र भर जिसे पाने की आरज़ू करते रहे,
आज वो हमारे सबसे बड़े दुश्मन निकले।
और उम्र भर जिसे ग़ैर समझा हमने,
आज वो ही हमारे अपने निकले।
उम्र भर सोचती रही कि ये करूंगी मैं,वो करूंगी मैं,
पर आज उम्र का आख़िरी पड़ाव है और किया
नहीं कुछ भी।
उम्र भर ख़्वाहिशें रखी कई,
पर एक ख़्वाहिश को भी पूरा किया नहीं कभी।
उम्र भर कोशिशें तमाम की अपने सपनों को
पूरा करने की,
पर कोशिशें कभी कामयाब हुई नहीं।
उम्र भर इंतज़ार करती रही कि कभी तो
मंज़िल तक पहुॅंचुगी,
पर मंज़िल तक कभी पहुॅंची नहीं।
~✍️ रीना कुमारी प्रजापत