कापीराइट गजल
शुक्रिया आपका
गर खामोश निगाहों ने यूं पुकारा न होता
प्यार सच्चा मेरी नजरों में तुम्हारा न होता
छोड़ देते हैं अक्सर, लोग बना कर अपना
मगर छोड़ना हमें आपको गंवारा न होता
हम को रखते हो पास तुम अपने दिल से
गर ऐसा न होता ये दिल तुम्हारा न होता
अब ढूंढ़ लेते हो हमें तुम कहीं न कहीं
नजर आते कहां गर यह सहारा न होता
तरस जाते हैं ‘दो लफ्ज़’ सुनने को आपसे
गर आपके इन लफ्जों का सहारा न होता
आप ने प्यार से हमें गर पुकारा न होता
यह दिल फिर से अपना आवारा न होता
वन्दना जी, मैं करूं कैसे
शुक्रिया आपका
इस यादव का लिखनतु पे सहारा न होता
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है