अब कैसे करूँ मैं तुमसे बात सखी
तुम्हीं ने तो दिया था आघात सखी
अब कैसे करूँ ........
एक ज़माने में तुम मुझे थे कितने अज़ीज़
मगर अपना बना कर दिया मुझको मात सखी
अब कैसे करूँ .......
ग़ौर से कभी ख़ुद को भी तो पढ़ा करो
हो जाएगी तुमको तुमसे हीं मुलाक़ात सखी
अब कैसे करूँ.......
तुम्हारे हीं खातिर मैंने अपनी ज़िंदगी बदली
फिर तुम्हीं बदल गये पर मैंने किया न प्रतिघात सखी
अब कैसे करूँ.......