आया वसंत,
इन्द्रधनुषी हुए
दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत
हुए मोहित, सुर
मानव संत..
प्रीत के गीत
गुनगुनाती धूप
बनालो मीत
जलाते दिए
एक-दूजे के लिए
कामिनी-कंत..
पीताभी पर्ण
संभावित जननी
जैसे विवर्ण..
हो हरियाली
मिलेगी खुशहाली
होगे श्रीमंत..
चूमता कली
मधुकर गुंजार
लजाती लली..
सूरज हुआ
उषा पर निसार
लाली अनंत..
प्रीत की रीत
जानकर न जाने
नीत-अनीत
क्यों कन्यादान?
'सलिल' वरदान
दें एकदंत..
----संजीव वर्मा