गरीबी कपड़ो से झलक कर सबके सामने आ रही थी,
उसे अपने दोस्तों से मिलवाने में मुझको शर्म आ रही थी,
झूठ कहते है वो लोग इश्क़ का दौलत से कोई लेना-देना नहीं,
आज ये पैसों की तंगी ही मेरी मोहब्बत खा रही थी,
मैं दूर खड़ा मुस्कुरा रहा था अपने इस हालात पर,
वो छोड़ कर मुझको एक अमीर की गाड़ी में जा रही थी।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'