लड़की अगर मुस्कुरा दे चुपचाप —
तो समझो, वो कुछ छोड़ आई है ख़्वाब।
आँखों में अब भी वो नमी बाकी है,
पर दिल से बहुत कुछ तोड़ आई है।
उस हँसी में जो सन्नाटा पसरा है,
किसी अपने का नाम छोड़ आई है।
काजल की लकीर ज़रा टेढ़ी क्यों है?
वो रातों में चुपचाप रो आई है।
होंठ काँपे नहीं, मगर दिल बिखरा था,
शायद कोई वादा मरोड़ आई है।
तुमने पूछा — “सब ठीक है न?”
वो बोली — “हाँ”,
वो हँसी जो अचानक थम गई बीच में,
वो कह गई —
“हाँ, कुछ और हो आई है…”
उसके जाने के बाद जो हवा बदली है,
वो अपनी खुशबू कहीं छोड़ आई है।
चाय का कप थामे थी, पर होंठ सूखे थे,
शायद किसी पुराने मौसम से लड़ आई है।
बाल बंधे थे, मुस्कान जड़ी थी चेहरे पर,
लेकिन चाल बता रही थी — बिखर आई है।
उसके शब्द कम थे, सांसें लंबी थीं,
जैसे कोई रिश्ता आँसुओं में धो आई है।
खिड़की से बाहर देखती रही देर तक,
शायद किसी जवाब से हार आई है।