(बाल कविता)
मैजिक कार
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पापा लाए मैजिक कार ।
पूजा कर पहनाया हार ।।
जब मैं बैठा अंदर घुस के।
बटन लगे थे कई कलर के।।
नीला बटन दबाया जैसे ।
राज महल झट आया वैसे ।।
राजसिंहासन पर मैं बैठा ।
थोड़ा तिरछा ऐंठा ऐंठा ।।
लगा हुआ पूरा दरबार ।
सपनों का सुंदर संसार ।।
काला बटन दबाया जैसे।
अंधकार सा छाया वैसे ।।
ज़रा देर में रात हो गई ।
तारों की बरसात हो गई ।।
बटन दबाया जैसे पीला ।
मौसम लगने लगा सजीला।
तभी अश्वरथ आया अंदर ।
बने सारथी मामा बंदर ।।
रथ पर बैठी राज कुमारी ।
बोली आओ करो सवारी ।।
मैं भी बैठा उसके पास ।
उड़ कर रथ पहुंचा आकाश ।।
नील गगन पर बच्चे प्यारे ।
नन्हें मुन्ने थे सब तारे ।।
बहुत देर तक खेला खेल ।
तभी आ गई छुक छुक रेल।।
बैठ गया फ़िर उसके अंदर ।
रेल चलाने लगा चुकंदर ।।
सीटें बोल रही थीं सारी ।
आओ मेरी करो सवारी ।।
सूरज चांद सितारे बैठे ।
देवलोक से सारे बैठे ।।
उतर गए फिर सब धरती पर ।
मैं भी नीचे गया उतर कर ।।
बटन दबाया जैसे लाल ।
बदल गया सब कुछ तत्काल ।।
लगी बोलने फौरन कार ।
पंख लग गए उसमें चार ।।
बटन दबाया तभी गुलाबी ।
अपने आप लगी तब चावी ।।
कार लगी फिर फौरन उड़ने ।
लगा बहुत मन मेरा डरने ।।
फर फर फर फर चलती कार ।
हर हर हर हर करती कार ।।
कार भागती रही निरंतर ।
गई समंदर के भी अंदर ।।
शीघ्र निकल कर बाहर आई ।
चमकीली तब बटन दबाई ।।
बटन दबाते हुआ धमाका ।
और कांपने लगा इलाका ।।
मैं भी नीचे गिरा धड़ाम ।
मुंह से निकल पड़ा हे राम ।।
बिस्तर से गिरते मैं जागा ।
मम्मी-मम्मी करते भागा ।।
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~राम नरेश 'उज्ज्वल'
मुंशी खेड़ा,
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मो: 07071793707
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