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कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

हयात एक उम्मीद भरी कहानी - भाग 2

हयात एक उम्मीद भरी कहानी - भाग 2
हयात दो दिन के बाद यूनिवर्सटी आई तो सबने राहत की साँस ली।

हाॅस्टल वार्डन मैम ने उसे डाँटा-

हयात , तुम बिना आवेदन के दो दिन कहाँ गई थी ??

तुम्हें इसका सहीं उत्तर बताना ही पड़ेगा ।

और अगर तुम्हारा जवाब संतोषप्रद नहीं पाया गया..तो कठोर कार्यवाही की जायेगी ।

हो सकता है, तुम्हें यूनिवर्सटी से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये ।


हयात ने बताया कि उसके खाला का तबियत बहुत ही ज्यादा खराब हो गया था ! जब उनका फोन आया तो मुझे हड़बड़ी में निकलना पड़ा ।


दरअसल मेरी खाला मुझे बहुत ज्यादा लाड़-दुलार करती हैं..उसने रूआँसा होते हुए कहा -
खाला का कैंसर लास्ट स्टेज में है मैम ! वही मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं ।


मैं और रूकना चाहती थी पर खाला ने कहा- देख बेटी, पढ़ाई छूटनी नहीं चाहिए। अब इस शरीर का क्या है..ये तो छूट ही जायेगा..इसे तो छूट ही जाना है आज नहीं तो कल।

तू प्राॅमिस कर मुझसे-
कुछ भी हो जाये, तू पढ़ाई नहीं छोड़ेगी।

नूर को भी बेवजह ही बदनाम किया गया था क्योंकि रही बात नूर की..तो नूर कहीं और नहीं पिताजी के बिजनेस के सिलसिले में गाँव से बाहर गया हुआ था ।

हयात के मम्मी-पापा आ चुके थे वहाँ गाँव में भी..
पड़ोसियों को खाला के तबियत के बारे में पता चल चुका था..
अनाप-शनाप बोलने वाले सब शर्मिन्दा तो थे मगर गलती करने वाले सभी लोग अपनी गलती मानते ही कहाँ हैं !

हयात ने आगे अपनी हाॅस्टल वार्डन मैम को बताया भी अपनी वस्तुस्थिति -

मैंने आपको बहुत खोजा मैम ..मगर आप कहीं नहीं मिलीं !!

मैंने अपने रूम मैट निकिता को बोली भी थी कि..मैं निकल रही हूँ..तू ये एप्लीकेशन मैम को दे देना..
मगर अब लगता है.. निकिता ने मेरी बातों को ध्यान से नहीं सुना । ।

मैम,अगर आप चाहें तो मेरे मम्मी-पापा से पूछ सकते हैं कि मैं अपने मम्मी-पापा के साथ, खाला के यहाँ थी भी या नहीं ।

हयात के मम्मी-पापा को फोन करने पर इस बात की पुष्टि भी हो गई कि वह अपने मम्मी-पापा के साथ ही थी ।

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हाॅस्टल वार्डन और सम्पूर्ण स्टाॅफ हर एंगल से सन्तुष्ट था हयात के जवाब से ।

बस उसे सख्त हिदायत दे दी गई थी कि आइन्दा उससे ऐसी गलती भूल से भी न हो वर्ना अगली बार सीधे यूनिवर्सिटी से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा ।

बहरहाल,
हयात बी.एस सी. (बायो.) के पहले साल में थी ।
साथ ही साथ नीट की तैयारी भी कर रही थी..और वो भी पूरे लगन के साथ ।
ये बात भी सच है कि वह नूर के साथ प्यार में थी ।

नूर भी था फाइनल इयर में बी.एस सी.
(बायो ) के यानि हयात से सीनियर ।

ये बात और है कि आगे का उसका कोई विशेष इरादा नहीं था हयात की तरह पढ़ने में ।

ये बात भी सच है कि नूर ज़रा आवारा किस्म का भी था ।
वो तो अपने अब्बू की बात रखने के लिए पढ़ाई कर रहा था वर्ना उसका और पढ़ाई का आँकड़ा छत्तीस का ही था ।

पता नहीं, इतनी खूबसूरत और दिमागदार लड़की हयात इस बिगड़ैल नूर के चक्कर में कहाँ से आ गई ।

जब भी वो लोग एकांत में होते थे तभी कोई भाईजान के फोन आने पर उसका चेहरा ज़रा टेन्स हो जाता था ।

हयात ने पूछा भी कि ये भाईजान कौन है जिनका फोन आते ही तुम बहुत ज्यादा टेन्शन में आ जाते हो।

सच-सच बताओ मुझे..आखिर बात क्या है ??

कोई बात नहीं है..तू बेवजह टेन्शन लेती है ..कोई बात होगी तो भला तुझसे क्यों छुपाऊँगा...
नूर इतना कहकर अक्सर वहाँ से निकल जाता था और हयात मन मसोसकर रह जाती थी ।

पता नहीं क्यों, नूर की बातों से सन्तुष्टि नहीं मिलती थी हयात को ।

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हयात की खाला इस दुनिया से रूखसत कर चुकी थीं ...हयात को ढेर सारी दुआएँ देकर..!!


खाला के जाने के बाद एक अकेलापन महसूस कर रही थी हयात मगर बात वही ..सबको जाना है एक दिन जिसका इशारा तो डाॅक्टर और खाला ने पहले ही दे दिया था हयात को ।


हयात के मम्मी-पापा ने समझाया भी कि
वो तुझे डाॅक्टर के रूप में ही देखना चाहती थीं..
हो सके तो अपनी पढ़ाई पूरे मन लगाके करना बेटी ..
देखना तू उनकी दुआओं से एक दिन डाॅक्टर ज़रूर बनेगी ।

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जिस बात का डर था..आज वही हुआ।

नूर को पुलिस पकड़कर ले गई थी..इल्जाम बहुत ही संगीन था..सीधे-सीधे फिरौती का था।

नूर किसी फिरौती वाले रैकेट के सम्पर्क में था जिसका अंडरवर्ल्ड कनेक्शन था।

नूर की अदालत में पेशी होने वाले ही थी कि अदालत ले जाते समय ही किसी ने नूर को गोली मार दिया था ।

पुलिस की पूछताछ इस सम्बन्ध में हयात से भी हुआ जिसमें हयात ने उस घटना का ज़िक्र जरूर किया कि कोई भाईजान का फोन अक्सर आता था..

और नूर कुछ दिनों से ज्यादा ही परेशान लग रहा था। इससे ज्यादा वह कुछ नहीं जानती थी..ये उसने साफ-साफ बता दिया था।

नूर के अचानक इस तरह जाने और बार-बार पुलिस पूछताछ से दुखी थी और परेशान भी थी हयात ।

काश नूर ने कुछ तो बताया होता..कुछ तो हिन्ट दिया होता..

हयात को सबसे ज्यादा दुख ये भी था कि इन सब घटनाओं से उनका कौम बेवज़ह बदनाम होता है ।

कुछ दिनों के बाद पता चला कि नूर,

सट्टा रैकेट के मुखिया.. भाई जान से जुड़ा हुआ था..जिसमें भाई जान और नूर के बीच करोड़ों के लेन-देन का लफड़ा था।

भाई जान और नूर के बीच कुछ और भी अंडरग्राउंड रहस्य था जिसका पर्दाफाश न होने पाये..इसके लिए नूर का मुँह ही बन्द कर दिया गया।

दबी जुबान से ये बात भी सामने आ रही थी कि कोई इन्सपेक्टर भी इस रैकेट से जुड़ा हुआ था।

एक प्लान के तहत पूरे फिल्मी स्टाइल में नूर को जानबूझकर गोली मारी गई थी।

पुलिस डायरी के अनुसार कुल मिलाकर यह जाँच का विषय था।

इन सब घटनाओं से हयात बुरी तरह दुखी थी..उसका मन पढ़ाई में बिलकुल भी नहीं लग रहा था..

मगर उसे उन सहेलियों की बातें याद आ रही थीं जब वह पहली बार यूनिवर्सिटी के लिए निकल रही थी पढ़ने और हाॅस्टल में रहने...

हिना ने उसे यहाँ तक कहा था कि तू एक नहीं..ऐसा मान के चलना..कि हम भी तेरे पीछे-पीछे ही आ रहे हैं !!

अगर तू आगे बढ़ गई..मतलब हम सब आगे बढ़ गये..और अगर तू नहीं बढ़ी मतलब हमारे दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हो गये !

अब तू हमारी इंजन है और हम तुम्हारी बोगियाँ।

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नीट( NEET) का इक्जाम वैसे तो अच्छा ही गया था हयात का।

आशान्वित थी वो पूरी तरह।

खुशी और राहत की बात ये थी कि उसने नीट क्लियर कर लिया था ।

साबित कर दिया था हयात ने कि जीवन में बाधायें स्वाभाविक हैं मगर आप उन्हें अपने जीवन में हावी मत होने दीजिए ।

सबसे ज्यादा खुश थीं उनकी सहेलियाँ क्योंकि वो भी एजुकेशन के मुख्य धारा से जुड़ रही थीं ।

हिना के साथ-साथ वहीदा भी आ चुकी थी यूनिवर्सिटी के हाॅस्टल में हयात की खाली जगह को भरने के लिये क्योंकि हयात तो अब किसी मेडिकल काॅलेज में दाखिला लेने के लिए निकल चुकी थी।

दोस्तों, धार्मिक कट्टरता किसी भी समस्या का समाधान नहीं।

हाँ, कट्टरता अपने वतन के प्रति रहे ..वतन की ख़ातिर रहनी चाहिए और आज़ादी इतनी तो रहे कि हम अपने सपने पूरे करने के लिए अनावश्यक नियमों को दरकिनार कर एक क़ायदे से अपना सामान्य जीवन बसर कर सकें !!

आज हयात के सफल होने पर उसकी काॅलोनी में दीपावली सा माहौल था..फटाके फूट रहे थे पूरे आसमाँ काॅलोनी में ।

जो लोग हयात के परिवार को भला-बुरा कह रहे थे किसी ज़माने में..आज वे सभी तारीफ कर रहे थे।

किसी भी घर की सुरक्षा के लिए ताला बहुत ही ज़रूरी है मगर अनावश्यक बंदिशों के जंग लगे ताले भी किस काम के।

ताले बनाये गये हैं अपनी सुविधानुसार खोलने और बन्द करने के लिए ताकि मिले हुए जीवन में खुशियों का आदान-प्रदान हो ।

विचारों का ,वायु का और पानी का प्रवाह बना रहे ।

ताकि मौसम में ताज़गी बनी रहे !!

जब सागर की लहरें नई हैं, सूरज नया है..चाँद नया है..आज की प्रकृति नई है तो क्यों न हम भी नये विचारों के गाड़ी में सवार होकर आगे बढ़ें।

रोड में चलते समय गाड़ी का ड्राइवर अपनी सुविधानुसार अगर थोड़ा सा कट मार ले..आगे बढ़ने के लिए..तो इसमें बुरा क्या है !!

भाग -1 पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

लेखक : वेदव्यास मिश्र


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

Ankush Gupta said

बहुत सुंदर कहानी. आप अत्यंत विचार करके लिखते हैं मेरी बहुत सारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं

वेदव्यास मिश्र said

Ankush Gupta जी, स्वागत वेलकम भाई !! आपकी समीक्षाएं मुझे निश्चित रूप से प्रेरित करती हैं ..कुछ और बेहतर करने के लिए !! दम तो आप सभी की दुआओं में है दोस्त !! पुन: अभिवादन आभार 🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

"गुरु बिन ज्ञान ना होय गोपाला" प्रणाम आचार्य जी - बहुत उत्तम श्रेणी की कहानी पढ़ने को मिली - रुपरेखा, सस्पेंस से अलग सामजिक सन्देश जो दिया गया है उत्तम सर्वोत्तम - दीक्षा देदीजिये यदि योग्य समझते हों तो

वेदव्यास मिश्र said

अशोक कुमार पचौरी जी, ये प्यार अनमोल है अनुज..ये बना रहे..सबकुछ अपने आप मिलने लगेगा..बनने लगेगा..निखारने लगेगा !! और आप पहले से ही निखरा हुए हैं !! आशीर्वाद है..आप सपरिवार हमेशा खुश रहें !! वेलकम आभार 💜💜

वेदव्यास मिश्र said

Ankush Gupta जी, सब आप शुभचिन्तकों की दुआयें है भाई साहब !! नमस्कार सुप्रभात 💝💝

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