बोलत मंडूक लखि, वृष्टि घटा घन घोर,
चातक निहारै अम्बर, अम्बु का पयपान करे।
पिक कूंकै, झीगुर गावै, उर से मधुर गीत,
शैवालिनी गैरों संग ओजमयी प्रस्थान करे।
मेघानन्दी नृत्य करै, मयूरनी के मोहवस,
इंदीवर मीन से तड़ाग में मुस्कान करे।
द्विज करें प्रीति मुख जोरि तरु शाख पै,
'सुमिल' का विरह-वियोग कांता को हैरान करे।
----क्रांति स्नेही