जो बुद्धि के ज़मीन पर शिक्षा का बीज बोता है,
संस्कारों को सिखाकर अनुशासन का सीख देता है,
जिनकी तालीम ऐसी कि शिष्य अपना नसीब ख़ुद लिख लेता है,
वही एक सच्चा शिष्य-प्रिय गुरु होता है..!
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--- कमलकांत घिरी
नतमस्तक हो आज यहां तुम
हर शिक्षक का, सम्मान करो
इस युग के द्रोणाचार्य को तुम
अब झुककर के प्रणाम करो
पथ प्रदर्शक, होते हैं शिक्षक
हम, सब को, राह दिखाते हैं
अपने ज्ञान, और अनुभव से
हर मुशिकल को सुलझाते हैं
आगे बढ़ते हैं, इनके दम पर
इनका मिल के सम्मान करो
इस युग के - ------------
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--- लेखराम यादव
पा न सको फिर जिसे उसको खोना मत,
सिसक - सिसक फिर उस पर रोना मत।
मातृस्नेह की छाँव या पिता-सा चिंतक,
भाई जैसा मित्र या बहन-सी हितचिंतक,
मिलते नहीं सहज, इनसे दूर होना मत,
पा न सको फिर जिसे उसको खोना मत
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--- सुभाष कुमार यादव
नहीं चाहते हम अपनी कला में कोई समझौता,
इसीलिए अपनी कला को छुपाए हुए हैं।
गर खुलेआम करने लगे हम कलाकारी
तो मिट जायेगी वो बेचारी,
इसीलिए अपनी कला को अपने पास ही
महफ़ूज़ रखे हुए हैं।
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--- रीना कुमारी प्रजापत
आशा और अभिलाषा की
ये घनघोर घटाएँ हैं,
ये जीवन प्राणि का जीवन
कुछ इस्मे बाधाएं हैं,
कठिन परीक्षा और समीक्षा
ये जीवन की गाथाएँ हैं,
गिर कर चलना चल कर गिरना....
बहुत यहाँ समस्याएं हैं,
आशा और अभिलाषा की
ये घनघोर घटाएँ हैं,
ये घनघोर घटाएँ हैं,
संघर्ष ही मूल मंत्र है
कामयाबि के पथ पर चलने का,
बिन संघर्ष क्या जीवन तेरा....
यहां सबकी अपनी अपनी कहानी है,
ये जीवन अनमोल घड़ी है ....
अपने अपने सपने हैं,
आशा और अभिलाषा की
ये घनघोर घटाएँ हैं,
ये घनघोर घटाएँ हैं
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--- राजू वर्मामैं वो मिट्टी हूँ जिसमें नफ़रत का एक भी कंकड़ मिलाकर एक अच्छे मटके की उम्मीद मत करना !!
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अवसर खोजने वालों के लिए डायरेक्ट सोने का अँगूठी खरीदना ही कोई मायने नहीं रखता..जबकि वे पत्तल बेचकर भी इसे खरीदने का अवसर तलाश लेते हैं !!
रतन टाटा जी के शब्दों में - " मैं किसी भी काम के लिए किसी विशेष अवसर की प्रतीक्षा नहीं करता बल्कि पहले मैं फैसले लेता हूँ फिर उसे सही साबित कर देता हूँ !! "
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बूँद-बूँद से सिर्फ घड़ा ही नहीं भरता...सागर भी छलक जाता है !!
कृतज्ञ रहिये सबके प्रति हमेशा और आत्मविश्वास से छलकते रहिये !!
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---वेदव्यास मिश्र
ईश्वर की दृष्टि से
कभी कोई दूर नहीं होता ।
दिखावे के दान का
कोई मूल्य नहीं होता ।।
समझा है यही मैंने
और समझना है तुम्हें भी ।
स्वयं के सिवा स्वयं का
कोई मित्र नहीं होता ।।
सार्थकता है तभी जब
निस्वार्थ हो जीवन ।
मानवता नहीं जिसमें
वो मनुष्य नहीं होता ।।
सत्यता यही है कोई
अतिश्योक्ति नहीं है ।
हृदय में समाहित हो
वो विलग नहीं होता ।।
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---डाॅ फौज़िया नसीम शाद
उमा तुम हो शक्ति तुम
मन मंदिर की भक्ति तुम
हिम सुता मैना सार
सखि सगिनी है अपार
चरण नमन बार बार
करें हम सब मनुहार
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---अर्पिता पांडेय
खामोशी के राज़दार इशारे समझने वाले।
अब आँखो ने आँखो को 'उपदेश' दे डाले।।
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---उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
[गाजियाबाद]
जैसे जैसे जीवन बीता, आंख से मंजर छूट गया,
गलियाँ छूटी, चौबारे छूटे, गाँव हमारा छूट गया l
सब सूरज के पीछे दौड़े आगे तुम और पीछे हम,
छूटी ताल तलैया सब की,बाग बगीचा छूट गया l
रुपया पैसा और बुलंदी पाने में सब यूँ मशगूल रहे,
रिश्ते-नाते, दया, सदाकत, सब कुछ पीछे छूट गया l
आगे बढ़े तो पथ पथरीले, मरुस्थल जैसे रेत मिले,
कहीं नहीं झरना पानी था, दरिया पीछे छूट गया l
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---विजय प्रकाश श्रीवास्तव
अगर संसद की सारी कसमें सच होतीं!
कुछ और ही होता
देश का वर्तमान
देश का आसमान!
सत्यनिष्ठों की सत्यनिष्ठा
दम तोड़ देती है संसद के अंदर ही
शेष बची
परोस दी जाती,चमचों की थाली में!
शपथ ग्रहण के बाद
पोशाक बदलने से पहले,श्रद्धा बदल जाती है स्वार्थ में!
प्रभुता और अखंडता जैसे शब्द,
अंकित रह जाते हैं पृष्ठों पर!
कर्तव्यों के कृंदन के स्वर,
कैद रह जाते संसद की दीवारों के अंदर ही!
काश! संसद की सारी कसमें सच होतीं......!!
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---अभिषेक_शुक्ल
सब बदलने में ,समय लग़ेगा।
ये दौर गुज़रने में, समय लग़ेगा ।।
ये जो सब उथल -पुथल है आस-पास।
ऐसे में मन को संभालने में समय लग़ेगा।।
ये अंधेरा ज़रूर ढलेगा !
इस मौत के कहर से तू ज़रूर बचेगा ।।
सारे दरवाज़े बंद हुए तो क्या हुआ ।
वो रोशनी का दरवाज़ा ज़रूर खुलेगा ।।
थोड़ा सब्र करो यारों हम सब फिर
हँसेंगे , जिएंगे ,खेलेंगे और मिलेंगे ।
बस , थोड़ा समय लग़ेगा ।।
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---परोमा भट्टाचार्या
चंद कागजों के ढ़ेर पर,
पत्थरों की इमारत बनी थी।
जैसे ही हृदय की गति थमी,
इमारत बिक गई थी।
ताउम्र,
कागज और पत्थर जोड़ता रहा।
मंजिल से मुंह मोड़ता रहा।
तलाशता रहा हुनर,
कागज से पत्थर कमाने के।
और अंत में,
ना कागज काम आया
और ना पत्थर।
और जो बची थी, मिट्टी।
और उसे भी हवा ने न अपनाया।
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---डॉ कंचन जैन स्वर्णा
आँखों में तम कभी
अनल की तरह बहता है
आँखों में रोशनी कभी
मोती की तरह बहता है ॥
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---Vadigi.Aruna

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




