किस ने बरसाए बादल किसको कहे गुनेहगार
बरबाद फसलों पे रोये कौन ठहरे गुनेहगार
बिखरे दाने जमीन पर टूटी कमरे फसलों की
कौन सजा देगा बादलों को कौन कहे गुनेहगार
बीज, खाद, पानी और मेहनत सारी हुई बरबाद
दे फिर कोई सजा हमें कहे बस हमें गुनेहगार
भूख से लड़े कि बरबादी ए किस्मत से लड़े
हुकुमरानी सहे खुदा की, किसे कहे गुनेहगार
किसे सजा तो दे दिल जिद पे जब उतर आया
तो लटक कर शाख पर खुद ही ठहरे गुनेहगार
यूँ ही बरसता रहा तू बेदर्द होकर लटकते रहे
शाखों से हम सर्द होकर, तूं भी ठहरे गुनेहगार
हम कोई वतन तो नहीं रोयेगा कौन बरबादी पे
हमारी, हम तो ताउम्र बाकिस्म्त ठहरे गुनहगार