सुना है बड़े मकान है तुम्हारें इस शहर में।
सब मकान ही है या कोई घर भी है उनमें।।1।।
इक भी हरा पत्ता ना है बागों के शज़र में।
तभी तो सारे परिन्दें उड़ गए दूर गगन में।।2।।
मैं ग़लत हो सकता हूँ तुम्हारी यूँ नज़र में।
गर खुश हो तुम तो खुश रहो इसी वहम में।।3।।
मैं कोई भी ऐब निकलता नहीं हूं तुझ में।
क्योंकि तुझमें कहाँ हो तुम,हम है तुझ में।।4।।
तेरी याद आयी तो अश्क़ आया नज़र में।
हर पल में तुम हो तुम्हें भूलें किस पल में।।5।।
क्या बतायें दोज़ख में मिलेंगें या जन्नत में।
पर पता है हम तब भी रहेंगें तेरे जिगर में।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




