मैं छतरी अपने वीर दी
मेरे वीर को लगता है
कि मैं छतरी हूँ उसकी
पर मैंने तो कभी उसे ज़िन्दगी की धूप से छुपाया नहीं
बारिश के तूफान से बचाया नहीं
हवा के तेज झोंके में थामा नहीं
अकेला जूझता सम्भालता अपनेआपको
शायद इसी उम्मीद में कि मेरी छतरी मेरे साथ है
पर मैं तो मशरुफ़ रही अपनी उलझनों में
काश ! छतरी का डंडा उसके ही हाथ में होता
तो हवा, धूप ,अनचाही बारिश की क्या मजाल थी
जो उसे छू भी जातीं ..
वन्दना सूद