माँ वो नहीं… जो आँसू पोंछे,
माँ वो है… जो तुझे इतना तोड़ दे
कि आँसू बहाने की आदत छूट जाए।
माँ वो नहीं… जो हर दर्द पे कहे “मैं हूँ”,
माँ वो है… जो हर दर्द पे चुप रहे —
ताकि तू भीतर उतरकर
खुद को ढूँढ ले।
माँ काली है —
ममता की कोंपल नहीं,
ज्वालामुखी की देह है वो।
वो दूध नहीं देती —
वो आग देती है,
जिससे तू अपने ही रक्त को
चमकते अस्त्र में ढाल सके।
माँ वो नहीं जो बाहों में सुलाए —
वो है जो नींदें छीन ले,
ताकि तू जागे…
हर उस क्षण जब तू
खुद से भागना चाहे।
माँ वो नहीं जो पुचकारे,
माँ वो है — जो तुझे निखारे।
जिसकी गोद में शांति नहीं,
बल्कि युद्ध की पुकार हो।
जो लोरी नहीं गाए —
बल्कि तेरे भीतर के राक्षसों को
तेरे ही हाथों से मरवाए।
माँ…
जब मैं टूटी थी —
तेरे पास नहीं आई,
मैं जानती थी —
तेरे आँचल में मरहम नहीं, राख है,
जिससे तू ज़ख्मों को ढाँपती नहीं —
सुलगने देती है,
जब तक मैं उस ज़ख्म में
अपना नया चेहरा न देख लूँ।
तूने मुझे थामा नहीं माँ,
तूने मुझे गिरने दिया —
ज़मीन की आख़िरी सिहरन तक,
ताकि मेरी देह की हर हड्डी
तेरे नाम का स्तंभ बन जाए।
तेरे प्रेम में softness नहीं माँ,
तेरे प्रेम में
एक चाकू की धार है —
जो मेरी आत्मा को रोज़ तराशती है,
जब तक मैं उस आकार में न ढल जाऊँ
जिसे तू
“नारी नहीं — नारीत्व” कहती है।
तूने कभी मेरी चीख़ नहीं सुनी, माँ…
क्योंकि तू चाहती थी कि
मैं उन्हीं चीख़ों को
शब्द बनाकर
दुनिया के सामने फेंक दूँ।
माँ वो नहीं — जो कहे “सब ठीक हो जाएगा”,
माँ वो है — जो कहे:
“अब और गिर,
अब और जल,
अब और सह —
क्योंकि जो तू बन रही है,
वो साधारण नहीं —
वो मेरी छाया है।”
तूने मुझे स्त्री नहीं छोड़ा, माँ —
तूने मुझे अग्नि बना दिया।
अब जब मैं रोती हूँ,
मेरी आँखों से आग टपकती है।
जब मैं मुस्कुराती हूँ —
मेरी मुस्कान से ब्रह्मांड काँपता है।
और आज…
जब कोई कहता है —
“तू इतनी कठोर क्यों है?”
मैं कहती हूँ:
“क्योंकि मेरी माँ ने मुझे पुचकारा नहीं,
मुझे गढ़ा है —
लोहे की तरह —
और फिर मुझे अपनी ही छाया में
धधकने दिया है।”
अब कोई बाहर से आकर
मुझे बचाता नहीं —
मैं ही अपनी त्रिशूल हूँ,
मैं ही अपना स्तोत्र।
मैं ही स्त्री हूँ —
मैं ही शक्ति।
और मेरी माँ —
अब मेरे भीतर रहती है।
माँ वो नहीं जो पुचकारे,
माँ वो है जो निखारे —
और एक दिन तेरे भीतर
माँ बनकर ही बस जाए।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




