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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

सोनाली बेंद्रे - बाज़ारवाद - अशोक कुमार पचौरी


सोनाली बेंद्रे
सोनाली बेंद्रे नब्बे के दशक की मशहूर अभिनेत्री हैं। फिलहाल वह 'द ब्रोकेन न्यूज' के दूसरे सीजन को लेकर चर्चा में हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने खुलासा किया है कि निर्माता उनके सह-अभिनेता के साथ झूठी अफेयर की खबरें उड़ाते थे।

सोनाली बेंद्रे नब्बे के दशक की काफी मशहूर और खूबसूरत अदाकारा हैं। उन्होंने अपने करियर में कई बेहतरीन फिल्में की हैं। वह उस वक्त की व्यस्ततम अभिनेत्रियों में से एक थीं। उन्होंने उस वक्त के कई बड़े अभिनेताओं के साथ सुपरहिट फिल्में दी हैं। उन्हें आज भी फिल्म 'सरफरोश', 'दिलजले' और 'मेजर साब' के लिए याद किया जाता है। सोनाली फिलहाल अपनी वेब सीरीज 'द ब्रोकेन न्यूज' के दूसरे सीजन को लेकर चर्चा में हैं।

'द ब्रोकेन न्यूज' के दूसरी सीजन में आएंगी नजर
सोनाली बेंद्रे ने जी 5 की वेब सीरीज 'द ब्रोकेन न्यूज' से ओटीटी डेब्यू किया था। इसमें 'पाताल लोक' अभिनेता जयदीप अहलावत भी उनका साथ देते हुए नजर आए थे। इस सीरीज में सोनाली ने न्यूंज एंकर की भूमिका निभाई है। इस क्राइम थ्रिलर सीरीज का निर्देशन विनय वैकुल निदर्शेन ने किया था। अब एक बार फिर सोनाली इस सीरीज के दूसरे सीजन से वापसी कर रही हैं। एक इंटरव्यू के दौरान अभिनेत्री ने फिल्मी करियर के दौरान हुए अनुभवों को साझा किया है। इस दौरान उन्होंने बताया कैसे नब्बे के दशक में मुख्य कलाकारों के अफेयर की अफवाहें उड़ाई जाती थीं।

वजन बढ़ाने का था दबाव
एक इंटरव्यू के दौरान सोनाली ने बताया कि जब वह फिल्मों में आईं तब इंडस्ट्री में पतली अभिनेत्रियों का चलन नहीं था। इस वजह से उन्हें हर निर्माता वजन बढ़ाने को कहते थे। उन्होंने कहा, 'वो लोग मुझे हर वक्त सिर्फ खाने को कहते थे, उनका कहना था कि मैं बहुत पतली हूं'। इस पर आगे बताते हुए उन्होंने कहा कि तब निर्माता अभिनेत्रियों में घुंघराले बाल और कर्वी फिगर चाहते थे। हालांकि, इसके उलट वह पतली और सीधे बालों वाली थीं.

निर्माता उड़ाते थे अफेयर की खबरें
बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उस वक्त अफेयर, लड़ाई आदि की खबरें हमेशा सच्ची नहीं होती थीं। उन्होंने कहा कि नब्बे के दशक के निर्माता जानबूझकर ऐसी अफवाहें फैलाते थे ताकि अपनी फिल्म को लेकर माहौल बना सकें। इसको लेकर उन्होंने कहा, 'आजकल कम से कम कलाकारों से पूछा जाता है कि उनके अफेयर की खबरें फैलने दें या नहीं, लेकिन हमारे वक्त पर ऐसा नहीं था। हमसे पूछा तक नहीं जाता था और ये अफवाहें बाहर उड़ा दी जाती थीं। कलाकारों के पास तब कोई विकल्प नहीं होता था'।

कहानी को आगे बढ़ाएगा दूसरा सीजन
'द ब्रोकेन न्यूज 2' दो मीडिया संस्थान के पात्रों की कहानी है। जिसको विनय वैकुल ने निर्देशित किया है। सीरीज को संबित मिश्रा ने लिखा है। यह सीरीज अपने पहले भाग की कहानी को आगे बढ़ाएगी। नए सीजन में सोनाली बेंद्रे के अलावा, जयदीप अहलावत और श्रिया पिलगांवकर केंद्रीय भूमिकाओं में नजर आएंगे।


सोनाली बेंद्रे ने ९० के दशक में निर्माताओं द्वारा अपने अफेयर की अफवाह उड़ाए जाने के बारे में एक इंटरव्यू में कहा है, यह वही दशक है जब लोग इन अफवाहों को इतने गौर से पढ़ा देखा और सुना करते थे कि किसी फिल्म के रिलीज़ होने के बाद की रुपरेखा एवं कमाई में बदलाव होते थे, इतना सब कुछ जब सोनाली बेंद्रे की नज़र में था तब भी उन्होंने सिर्फ पैसे एवं फेम कमाने के लिए यह होने दिया - और अब जबकि वह ओ टी टी प्लेटफार्म पर डब्यू कर चुकी हैं तो फिर एक बार ख़बरों में छाने के लिए एवं फेम के लिए उन्ही झूटी ख़बरों का अनावरण करके सुर्ख़ियों में आना चाहती हैं - और आ भी रही हैं - ऐसा कोई भी संस्थान नहीं है जो इन क्रिया प्रतिक्रियाओं पर रोक लगाए - अखबार जिन्होंने उनके अफेयर की झूटी खबरें छापकर कमाई की थी आज वही अखबार उन ख़बरों का खंडन करके फिर से कमाई करने की तैयारियों में लगे हुए हैं - "बहुत ही दुःख का विषय है कि किसी भी खबर की पुष्टि नहीं की जाती - झूटी खबरें फ़ैलाने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं होती - एवं कलाकार खुद अपने चाहने वालों को धोका देते हैं" पत्रकार - अखबार - खबरें पैसे देकर बनायीं जाने लगी हैं - जहाँ ख़बरों को शालीनता के साथ प्रस्तुत किया जाता था वहां आज उनको मसाला लगाकर इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि देखने - सुनने वाले बस न्यूज़ चैनल बदलते रहते हैं - इसके उतर हर न्यूज़ चैनल पर एंकर भेड़ बकरियों की तरह चें में चें में तो कभी कुत्तों की तरह भो भो भो करते नजर आते हैं - बड़े दुःख का विषय है एवं सच है की आज न्यूज़ में कोई सच्चाई बाकी नहीं है एवं न ही उसकी प्रमणिकता का अता पता है - हर कोई अपना न्यूज़ चैनल - न्यूज़ पेपर खोलकर बैठा है।
क्या आप सच में १०० सेकंड में १०० बड़ी खबरें देख, सुन, समझ सकते हैं?
क्या सच में इंडिया टी वी ने स्वर्ग तक सीढ़ियों की खोज कर ली है?

सफ़ेद झूठ बड़े आराम से इज्जत के साथ बेचा खरीदा एवं परोसा जा रहा है - वहीँ सच को आंच में तपाया जा रहा है - कैद में रखा जा रहा है - देखते हैं कब तक - क्युकी कहा गया है साँच को आंच से फर्क नहीं पड़ता - उम्मीद है एक दिन यह सब ख़त्म होगा!!!


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

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वेदव्यास मिश्र said

मैंने आपकी यह लेख पढ़ी सोनाली बेन्द्रे और उनके वेब सीरीज तथा उनके फिल्मी सफर व अफवाहों की रियलिटी पर..जो लास्ट में आपकी सम्पादकीय नज़र है..उसने तो कमाल कर दिया है !! क्या लिखा है आपने .. समाचार तो सिर्फ दूरदर्शन के जमाने में ही विश्वसनीय होते थे क्योंकि उसमें सरकार का सेंसरशिप भी था और प्रामाणिक पुट भी ..मगर प्राइवेट चैनलों की टीम आर पी नीति ने सब चौपट कर दिया है !! अब न मैं न्यूज देखता हूँ ..न ही क्रिकेट और न ही कौन बनेगा करोड़पति..ये सिर्फ जुजुप्सा जगाते हैं ..एक सस्ते क्वालिटी का नशा है ..और कुछ नहीं !! बहुत ही व्यापक और पैनी नज़र 👌👌 नमन है आपकी उत्कृष्ट लेखनी को !!

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