पहचानो कौन हूं मैं
कई वर्षों का इतिहास मेरा
सरल शब्दों से जानी जाती
हर भावों से हूं परिपूर्ण मैं
भारत की मातृ भाषा कहलाती
हां मैं तुम्हारी हिंदी भाषा हूं
भारत की शान और
भारतवासियों की जान हूं
गौरव और अभिमान हूं
हर कल्पनाओं का मूल आधार हूं
क्योंकि मैं हिंदी भाषा हूं।
मां की लोरी
बच्चे के मुस्कान
दादा जी की किस्से कहानियां
संगीत की सुर ताल हूं मैं
हां मैं हिंदी भाषा रस और अलंकारों से भरी हूं मैं।
लिखी गई मुझसे भारत की एकता,
और सौराष्ट्र का इतिहास
साथ खेलते होली और
एक साथ मानते कई त्यौहारों की किताब
क्योंकि मैं हिंदी भाषा एकता की मिशाल हूं।
गंगा की धारा की तरह बहती,
कलकल करती एक अविरल धारा हूं
जो एक राज्य से दूसरी और चली जाती
बड़ी सरलता से समझ में आ जाती
क्योंकि मैं हिंदीभाषा बड़ी सरल हूं।
हिंद की आन बान और शान हूं मैं
भारतवासियों को आत्मा और पहचान हूं मैं।
रचनाकार- पल्लवी श्रीवास्तव
(अरेराज; ममरखा, पूर्वी चंपारण बिहार)