कल की शूली पर खुशी है आज की
अब नही गुंजाइश यहां फरियाद की।
खामोशियों का अर्थ कौन पहचानेगा
आजकल खातिर है बस आवाज की।
चांदनी भी छानके पीते इस शहर लोग
वाह बलिहारी दुनियां हंसी अंदाज की।
वक्त का साया दाँत में तिनका दबाये
हाथ में खंजर तो शकल जैसे दास की।
आज उधार घी पियें कल किसने देखा है
आनेवाला आएगा फ़िक्र है बस आज की II